वो भी नेता थे, जिन्होंने देश की खातिर
अपने पूरे जीवन को होम था कर डाला
एक ये भी नेता है, जिन्होंने कुर्सी की खातिर
अफजल और कसाबों की बिरयानी खिला के है पाला
आज जब गाँधी, सुभाष, और तिलक
मंगल पांडे, राजगुरु, सुखदेव और भगत
स्वर्ग से इन नेताओं की करतूतों को देख कर
वो शर्मशार हों जाते होंगे,
पहले शहीद हुए थे वो
अब इन नपुंसको के कारण
वो लज्जा से मर जाते होंगे
उन्होंने जब दी थी जाने तो सोचा होगा
हम अपना एक अच्छा मुल्क बनाएंगे
सब के पेट में दाना होगा
सभी को जीने का अधिकार दिलाएंगे
पर लगता है अब तो जैसे सिर्फ
नेताओं और गुंडों को जीने का अधिकार है
आम जनता मरती है तो मर जाये
वैसे भी गरीबों का होना नेताओं के लिए बेकार है
जब तक आते नहीं है चुनाव
इन नेताओं को जनता से
भला कौन सा सारोकार है
जब इन नेताओं से पूंछो
क्यूँ अफ्जल कसाब जैसे आतंकी
अब तक फांसी से दूर बैठे हैं
क्यूँ ये नेता इन दुश्मनों को
जेल में बंद कर के चैन से लेटे हैं
तो इन नेताओं का कहना है
हम क़ानून के रक्षक है
हम भक्षक कैसे बन जाएँ
बिना सुनवाई के इन सब को
हम फांसी पर कैसे चढ़वाएं
मै पूंछता हूँ
अफजल की दया याचिका
ख़ारिज होने पर भी
क्यूँ ग्रह मन्त्रालय में
वो रिपोर्ट ढाई साल धुल खाती है
क्यूँ कसाब को फांसी देने में
निचली अदालत भी
दो साल का लम्बा समय लगाती है
क्यूँ कसाब की सजा हेतु
उच्चतम न्यायलय में जल्दी नहीं की जाती है
मुझे तो इस देरी में
सरकार और नेताओं की ही
चाल नजर आती है
दाल में कुछ काल नहीं
मुझे तो पूरी ही काली
दाल नजर आती है
एक अतंकवादी के जन्मदिन पर
कुछ धमाके हों जाते हैं
और हमारे देश के कर्ण धार
जांच के पानी से अपना मुह धो कर
अपने घर में जा कर सो जाते है
जांच के पानी से मुह धो लेने वाले
ये जो किस्मत के है हेठे
जाने कब समझेंगे किसी विस्फोट मे
मर सकते हैं इनके भी बेटे
ये कुछ नामर्द हमारे देश में आकर
हमारे बच्चों की जाने ले जाते हैं
और हमारे कायर नेता
रोष दिखा कर चुप हों जाते हैं
जो देश के वीर जवान
आतंकियों को पकड़ कर
जेलों में बंद कराते हैं
तो ये नेता उनको सजा दिलवाने के बदले
जेलों में करोडो खर्च कर के
बिरयानी खिलाते है
देश के नेताओं
अब तो तुम कायरता छोडो
सीखो कुछ अपने पुरखों से
इन आतंकियों की गर्दन तोडो
और जो तुम अब भी नही जागे
तो मजबूरन हम जग जायेंगे
और फिर तुम जैसे कायर
इस देश से पक्के से मिट जायेंगे
अम्बिकाप्रसाद दुबे'कुंदन'/श्रवण शुक्ल
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